बीजेपी: वसुंधरा राजे के समर्थक होने लगे एकजुट, विरोधियों ने भी बनाई रणनीति

एनसीआई@जयपुर/सेन्ट्रल डेस्क
विधानसभा चुनाव के बाद धीमी पड़ चुकी राजस्थान भाजपा में गुटबाजी एक बार फिर तेजी पकड़ने लगी है। जो तस्वीर सामने है उसमें तो साफ दिख रहा है कि एक ओर केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया व राजस्थान विधानसभा में उप नेता राजेन्द्र राठौड़ का गठजोड़ पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को दरकिनार करने की मुहिम में जुटा हुआ है तो वसुंधरा भी खामोश नहीं बैठी हैं। दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के अनुसार वे भी अपने समर्थक पूर्व मंत्रियों व विधायकों से लगातार सम्पर्क में रहते हुए उन्हें एकजुट करने में लगी हुई हैं।
इस रिपोर्ट के अनुसार वसुंधरा राजे आगामी माह नवम्बर में ऑन लाइन प्लेटफाॅर्म पर जिला स्तरीय नेताओं से संवाद शुरू करेंगी। बताया जा रहा है कि वसुंधरा के विश्वस्त पूर्व मंत्री युनूस खान सहित कालीचरण सराफ, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी और विधायक प्रताप सिंह सिंघवी इसकी तैयारी के तहत अपने खेमे के नेताओं की सूची तैयार करने में जुट गए हैं। इस संवाद के बाद दिसम्बर माह में उनका राज्य के विभिन्न जिलों का दौरा करने का भी कार्यक्रम है। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने के बाद दिल्ली से जयपुर पहुंचीं वसुंधरा राजे से पिछले एक सप्ताह में कई पूर्व विधायकों व पूर्व मंत्रियों ने मुलाकात की है। इन पूर्व मंत्रियों व विधायकों ने वसुंधरा राजे को हर परिस्थिति में साथ रहने का भरोसा दिलाया है। वसुंधरा राजे से मुलाकात करने वालों में आदिवासी बहुल उदयपुर सम्भाग के नेताओं की संख्या अधिक रही।
वहीं, शेखावत, पूनिया व राठौड़ ने संगठन में मंडल से लेकर प्रदेश स्तर तक जिन नेता व कार्यकर्ताओं को महत्व देना शुरू किया है, उन्हें वसुंधरा राजे का विरोधी माना जाता है। इसी प्रकार संगठन में हर स्तर पर जो बदलाव किए गए हैं, उसमें भी वसुंधरा विरोधियों को ही आगे रखे जाने की चर्चा है। पार्टी के विभिन्न बड़े कार्यक्रमो-बैठकों से अलग रहीं वसुंधरा राजे के समर्थकों को पार्टी के ऐसे कार्यक्रमों से ही दूर रखे जाने के आरोप भी लग रहे हैं। वसुंधरा राजे ने इस बात की शिकायत पिछले दिनों दिल्ली दौरे के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से की थी। पार्टी की इस आंतरिक गुटबाजी का ही नतीजा है कि अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ होने वाले कार्यक्रमों को भी अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाती है। दूसरी ओर, वसुंधरा राजे लम्बे समय से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बिलकुल नहीं बोल रहीं हैं। वहीं, शेखावत, पूनिया व राठौड़ लगातार गहलोत सरकार को घेरने में जुटे हुए हैं।
वसुंधरा राजे व गुट साथ देता तो गिर जाती गहलोत सरकार
राज्य की अशोक गहलोत सरकार अभी कुछ समय पूर्व ही बहुत बड़े सियासी संकट से उबरी है। पूर्व उपमुख्यमंत्री व पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट की बगावत के कारण यह हालात पैदा हुए थे। शुरू में आंकड़े ऐसे थे, जिनके चलते गहलोत सरकार का गिरना तय माना जा रहा था। सचिन पायलट के भाजपा में आने के पूरे आसार बन चुके थे। कहा जा रहा है कि मगर वसुंधरा राजे ने ऐसा नहीं चाहा, इसी से गिरना तय मानी जा रही गहलोत सरकार बच गई। इसी प्रकार वसुंधरा राजे के सरकारी बंगले सहित उनसे सम्बन्धित कुछ अन्य मसलों पर गहलोत सरकार की ओर से अपनाए गए सहयोगी रुख की भी आज तक चर्चा है।