पुण्य तिथि(8अक्टूबर) विशेष: जेपी को दिया गया वायदा निभाना अटल जी को पड़ गया था भारी

एनसीआई@नई दिल्ली/सेन्ट्रल डेस्क
आज की पीढ़ी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को तो जानती है, लेकिन जेपी को जानने वाले कम ही होंगे। आज उनकी पुण्यतिथि पर आप ये दिलचस्प कहानी पढ़ेंगे तो जान पाएंगे कि जेपी कितनी बड़ी शख्सियत थे कि अटलजी तक ने उनसे ऐसा वायदा किया था, जिसे पूरा करना आसान नहीं था और उस फैसले के खिलाफ उनकी पूरी पार्टी खड़ी हो गई थी।
अपने वचन का मान रखने के लिए अटल जी को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्ष को कोई बड़ा चेहरा चाहिए था। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के बड़े नायक जयप्रकाश नारायण (जयप्रकाश नारायण श्रीवास्तव) बिहार में शांति से अपने दिन गुजार रहे थे। उनकी छवि उस 1974-75 में भी ऐसी थी कि इंदिरा गांधी भी डरती थीं।
महानायक ‘जेपी’
लेकिन जब उस दौर में विपक्ष के नेताओं ने उन्हें सम्पूर्ण क्रांति का नेतृत्व करने वाला महानायक बनने के लिए मना लिया तो सभी नेताओं से उन्होंने कुछ कुछ शर्तें रखीं। सबने उनकी बात स्वीकार की तो, अटलजी ने भी मान लिया कि वो जनसंघ का विलय जनता पार्टी में कर देंगे। कभी श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय के खून पसीने से सींची पार्टी जनसंघ को विलय करके खत्म करने का निर्णय लेना आसान नहीं था।
यक्ष प्रश्न की चुनौती
अटलजी भी इसे बखूबी समझते थे, लेकिन वो ये भी जानते थे कि बिना जेपी के कई दशकों तक इंदिरा गांधी को कुर्सी से कोई नहीं उतार सकता। ऐसे में सबको कुछ ना कुछ कुर्बानी देनी ही होगी. ऐसे में जनसंघ की कुर्बानी के लिए वो तैयार हो गए थे। जेपी को भी चुनना गलत फैसला साबित नहीं हुआ। पहली बार जनता को लगा कि जेपी कह रहे हैं कि इंदिरा गांधी गलत है, तो गलत ही होंगी। इंदिरा ने इमरजेंसी का ऐलान कर दिया, सारे नेता जेलों में ठूंस दिए गए, जेपी को भी एक गेस्ट हाउस में नजरबंद कर दिया।
इमरजेंसी हटाने के बाद इंदिरा गांधी ने खुफिया रिपोर्ट्स के आधार पर चुनाव करवाने का फैसला किया। उनको उम्मीद थी कि वो जीतकर फिर सत्ता में आ जाएंगी, इसलिए सभी नेताओं को जेल से रिहा कर दिया गया। लेकिन ये दांव उलटा पड़ गया क्योंकि, जेपी की लहर में इंदिरा और संजय सरकार बनाना तो दूर खुद की सीट भी नहीं बचा पाए थे।
अटल अग्नि परीक्षा
इस ऐतिहासिक चुनाव के बाद जब अटल जी की पार्टी यानी भारतीय जनसंघ के जनता पार्टी में विलय का प्रस्ताव आया तो जनसंघ के कार्यकर्ताओं को ये फैसला पसंद नहीं आया। ये बात कार्यकर्ताओं को पच नहीं रही थी कि अपनी अलग विचारधारा वाली पार्टी का विषम विचारधारा वाले दलों के साथ विलय हो जाए, जनसंघ का अस्तित्व ही खत्म हो जाए, ऐसा होने देना उन्हें कतई गवारा नहीं था।
वैसे भी इंदिरा गांधी के निरंकुश शासन से लोहा लेने में जनसंघ और इसके कार्यकर्ता सबसे आगे थे, पर कार्यकर्ताओं को डर था जनता पार्टी में विलय से जनसंघ अपनी विशिष्ट छवि खो देगा और लोग जनसंघ की राष्ट्रवादी विचारधारा से उपजे राष्ट्रहित के कार्यों का श्रेय भी ले लेंगे, लेकिन अटल जी ने लोकनायक जेपी को वचन दे रखा था पार्टी के विलय का।
अब अटल जी दुविधा में थे, एक तरफ जहां जेपी को दिए गए वचन की लाज रखनी थी वहीं दूसरी और पार्टी की आत्मा यानी कार्यकर्ताओं को मनाना था जो एक कठिन काम था, पर जो मां सरस्वती का पुत्र हो उसके लिए भला क्या मुश्किल ? अटल जी ने ये मुश्किल काम सिर्फ दो पंक्तियां बोल कर पूरा कर दिया। एक रैली में कुपित कार्यकर्ताओं से मुखातिब होकर अटल जी ने कहा था कि ‘आपातकाल के घोर अंधेरे में जनसंघ का दीपक रोशनी का केन्द्र था। अब आपातकाल की काली रात्रि समाप्त हो चुकी है, अब सूर्योदय हो गया है, दीपक बुझाने का समय हो गया है।’
इस तरह चला सरस्वती पुत्र का जादू
ये सुनकर कार्यकर्ताओं ने खुशी खुशी पार्टी के विलय का फैसला स्वीकार कर लिया था, दरअसल दीपक जनसंघ का चुनाव चिन्ह था, मां सरस्वती के पुत्र का जादू चल गया था। इन दो पंक्तियों में बड़ी सहजता से अटल जी ने सिरदर्द बन चुकी एक समस्या को हल कर दिया। हालांकि बाद में जनता पार्टी की सरकार भी अंर्तविरोधों के चलते गिर गई और इंदिरा गांधी ने 1980 में फिर सत्ता में वापसी की। उस दौर में अटल, आडवाणी आदि नेताओं ने 6 अप्रैल 1980 को एक नई पार्टी भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी थी।
साभार: Zee News