July 12, 2025

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कृषि विश्वविद्यालय कोटा का 8 वां दीक्षांत समारोह: 343 विद्यार्थियों को डिग्रियां प्रदान की, कुलाधिपति एवं राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने दिया महत्वपूर्ण संदेश

कृषि विश्वविद्यालय कोटा का 8 वां दीक्षांत समारोह: 343 विद्यार्थियों को डिग्रियां प्रदान की, कुलाधिपति एवं राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने दिया महत्वपूर्ण संदेश

एनसीआई@कोटा

कृषि विश्वविद्यालय का 8वां दीक्षांत समारोह गुरुवार को राज्य कृषि प्रबंध संस्थान (सिआम) ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया। समारोह की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने की।

समारोह में अकादमिक वर्ष 2023-24 की स्नातक, स्नातकोत्तर एवं विद्यावाचस्पति परीक्षाओं में उत्तीर्ण 343 अभ्यर्थियों को उपाधियां प्रदान की गई। इनमें से 287 कृषि, उद्यानिकी एवं वानिकी स्नातक, 44 कृषि, उद्यानिकी एवं वानिकी स्नातकोत्तर तथा 12 कृषि एवं उद्यानिकी विद्यावाचस्पति के अभ्यर्थी शामिल हैं। दीक्षांत समारोह में कुल 14 अभ्यर्थियों को स्वर्ण पदक प्रदान किए गए। इनमें से 9 स्वर्ण पदक छात्राओं तथा 5 छात्रों ने प्राप्त किए। आरती चन्द्रन स्नातकोत्तर (वानिकी), वनोत्पाद एवं उपयोग को कुलाधिपति स्वर्ण पदक से तथा ट्विंकल वर्मा स्नातक (ऑनर्स) कृषि को कुलपति स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। राज्यपाल बागडे ने अपने सम्बोधन में कहा कि दीक्षांत शिक्षा का अंत नहीं बल्कि यह जीवन में एक नए अध्याय की शुरुआत है। विद्यार्थियों को जो डिग्री प्रदान की गई है, वह सिर्फ एक प्रमाण पत्र नहीं, बल्कि उनकी मेहनत, संघर्ष एवं निरंतर प्रयासों का सम्मान है। डिग्री केवल प्रमाणपत्र नहीं, बल्कि नई जिम्मेदारी है। इस डिग्री का उपयोग वे समाज, राष्ट्र के विकास में करें।

छात्राएं हर क्षेत्र में आगे

राज्यपाल बागडे ने कहा कि यह अत्यधिक प्रसन्नता का विषय है कि कुल 343 डिग्रीधारकों में 140 छात्राएं शामिल हैं। कुल 14 स्वर्ण पदकों में से 9 स्वर्ण पदक छात्राओं को प्राप्त हुए हैं। यह लगभग 64 प्रतिशत है। कुलाधिपति व कुलगुरु पदक भी हमारी बेटियों ने प्राप्त किए हैं जो दर्शाता है कि छात्राएं आज हर क्षेत्र में आगे हैं। बेटियां आगे बढ़ेगी तभी समाज समुचित रूप में उन्नति के पथ पर अग्रसर हो सकता है। मुझे खुशी है कि राजस्थान में बेटियां उच्च शिक्षा में निरंतर आगे बढ़ रही हैं।

प्राकृतिक खेती अपनाएं

बागडे ने कहा कि विश्व में जनसंख्या के अनुपात में अन्न उत्पादन की अत्यंत आवश्यकता है, जिसके लिए गुणवत्तापूर्ण खेती अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि ज्यादा पैदावार के लिए रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है, जिससे जैविक तंत्र, पारिस्थितिकी एवं मानव स्वास्थ्य को खतरा है। इसलिए रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम कर प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित खेती को अपनाना होगा। उन्होंने कहा कि जैविक खेती से अधिक उत्पादन कैसे लिया जाए, इसके लिए हमारे कृषि विश्वविद्यालयों को ध्यान देने की जरूरत है। कृषि वैज्ञानिकों को इसके लिए चिंतन एवं मनन करने की आवश्यकता है। उन्होंने कृषि और किसान से जुड़े सहायक व्यवसायों को बढ़ावा देने की आवश्यकता जताई। इनमें विशेष रूप से डेयरी उद्योग का उल्लेख किया।

कृषि तकनीकों के प्रसार का माध्यम बनें विश्वविद्यालय

राज्यपाल ने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय आधुनिक ज्ञान-विज्ञान, नवीनतम तकनीकों एवं व्यावहारिक समाधान के प्रसार का सशक्त केन्द्र बनें। विश्वविद्यालय किसानों के हित में संचालित योजनाओं को प्रभावी रूप से जमीन तक पहुंचाने में अग्रणी भूमिका निभाए। हाड़ोती की धरती पर उच्च गुणवत्ता वाला बासमती चावल उगाया जाता है, जिसकी आपूर्ति विश्व के कई देशों में की जाती है। इस उपलब्धि के लिए यहां के किसान धन्यवाद के पात्र हैं।

राज्यपाल ने भारतीय शिक्षा पद्धति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को रेखांकित करते हुए कहा कि भारत के ज्ञान का सूर्य युगों से दैदिप्तमान रहा है। लॉर्ड मैकाले को भारतीयों के नैतिक मूल्यों से भय था, इसलिए उन्होंने शिक्षा पद्धति में बदलाव कर अंग्रेजी शिक्षा पद्धति लागू की। भारत ने ही शून्य एवं दशमलव की खोज की है, जिसकी बदौलत आज विज्ञान नई ऊंचाइयों तक पहुंच रहा है। उन्होंने कहा कि ऋषि भारद्वाज विमान निर्माण की तकनीक युगों पहले लिख चुके हैं। भारत में नालंदा जैसा विश्वविख्यात विश्वविद्यालय था, जिसे बख्तियार खिलजी ने नष्ट किया। उन्होंने वागड की मिट्टी में जन्मी कालीबाई भील का उल्लेख करते हुए बताया कि जब अंग्रेजों ने पाठशाला बंद कर उनके गुरु को गाड़ी से बांधकर घसीटा, तब कालीबाई ने अपने प्राणों की आहुति देकर अपने गुरु की रक्षा की। राज्यपाल ने कहा कि हमें अपनी बौद्धिक क्षमता को इस स्तर तक विकसित करना है कि हमारे विश्वविद्यालयों से डॉ. कलाम, श्री रामानुजन जैसे व्यक्तित्व निकलें, ताकि न केवल राष्ट्र बल्कि हमारे शिक्षण संस्थानों और गुरुओं का भी विश्वभर में नाम हो। उन्होंने भारतीय गुरुकुल पद्धति की सराहना करते हुए कहा कि यह प्रणाली आज भी प्रेरणा स्रोत है।

अष्टम दीक्षांत समारोह में कुलगुरु डॉ. अभय कुमार व्यास ने छात्रों को शुभकामनाएं देते हुए विश्वविद्यालय की उपलब्धियों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केन्द्र, कोटा में तीन करोड़ रुपए की लागत से स्थापित कॉमन इनक्यूबेशन सेंटर के माध्यम से धनिया, लहसुन और बेकरी उत्पादों के प्रसंस्करण के लिए प्रशिक्षण देकर युवाओं व किसानों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया जा रहा है। अब तक खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में 200 से अधिक उद्यमी तैयार किए जा चुके हैं और 600 से अधिक लोगों को प्रशिक्षण दिया गया है, जो प्रतिमाह 10 हजार से डेढ़ लाख रुपए तक की आय अर्जित कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि शिक्षा, अनुसंधान, प्रसार एवं प्रशिक्षण को सशक्त बनाने के लिए विश्वविद्यालय द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर 12 एमओयू किए गए हैं।

दीक्षांत अतिथि एवं सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के पूर्व कुलपति डॉ. जेपी शर्मा ने कहा कि आज का दिन अपनी शैक्षिक उपलब्धियों के लिए उत्सव मनाने का अवसर होने के साथ ही समाज और राष्ट्र के प्रतिबद्धता की शपथ लेने का भी अवसर है। उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता इस बात की है कि हम कृषि पाठ्यक्रमों को नई शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप पुनर्गठित करें। उन्होंने कहा कि नई नीति के तहत छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान और फील्ड एक्सपोजर प्रदान करने पर जोर दिया गया है। जिससे वे बेहतर किसान, वैज्ञानिक अथवा उद्यमी बन सकें। आधुनिक कृषि की जटिलताओं एवं बहुआयामी स्वरूप को देखते हुए हमें आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस, डाटा साइंस, रोबोटिक्स एग्री बिजनेस, बायोटेक्नोलॉजी, नैनोटेक्नोलॉजी जैसे समसामयिक एवं आधुनिक विषयों को कृषि शिक्षा का अभिन्न अंग बनाना होगा। उन्होंने कहा कि धर्म, समाज और संस्कृति में कृषि को सर्वाेत्तम आजीविका माना गया है। कृषि की उत्तम विधाओं का उल्लेख हमारी वैदिक संहिताओं एवं पुराणों में मिलता है। सिंचाई की प्राचीन भारतीय तकनीकें आज भी अत्यन्त प्रभावी है। जैविक या प्राकृतिक खेती हमें हजारों साल से विरासत में मिली हुई है। अंधाधुंध रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के प्रयोग से भूमि की उर्वरता में निरंतर कमी आई है। कृषि उत्पादन की गुणवत्ता कम हुई है और हमारा गौ-वंश रूपी पशुधन बेकार व बेसहारा हो गया है। उन्होंने वर्तमान कृषि समस्याओं के समाधान में प्राचीन तकनीकों को उपयोगी बताया।

लोकार्पण एवं विमोचन कार्यक्रम

दीक्षांत समारोह के दौरान राज्यपाल ने पुस्तक प्रकाशन के अंतर्गत पांच कृषि सफल उद्यमी पुस्तिकाएं एवं एक स्वर्ण जयंती मशाल संचालन अभियान पुस्तिका का भी विमोचन किया गया। दीक्षांत समारोह के दौरान विश्वविद्यालय द्वारा विकसित चना, मसूर एवं अलसी की पांच नई किस्मों (कोटा देशी चना-4, कोटा देशी चना-5, कोटा देशी चना-6, कोटा मसूर-5 एवं कोटा बारानी अलसी-7) का लोकार्पण किया गया। इसी के साथ पांच इकाइयों का भी लोकार्पण किया गया। इसमें विश्वविद्यालय परिसर में मॉल, उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय, झालावाड़ में एक पुस्तकालय भवन, कृषि अनुसंधान केन्द्र, कोटा पर बीज भंडारण गोदाम तथा साथ ही कृषि महाविद्यालय, कोटा की मुख्य सड़क एवं प्रवेश द्वार का शिलान्यास किया गया। समारोह के दौरान 6 प्रकाशनों, जिसमें पांच कृषि सफल उद्यमी बुकलेट एवं एक स्वर्ण जयंती मशाल संचलन अभियान बुकलेट का विमोचन किया गया।

दीक्षांत समारोह में राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय कोटा के कुलगुरु प्रो. एसके सिंह, कोटा विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. भगवती प्रसाद सारस्वत, कुलसचिव मनीषा तिवारी, प्रबंध मंडल सदस्य, विद्या परिषद, महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, विश्वविद्यालय के निदेशक, कुलवित्त नियंत्रक, परीक्षा नियंत्रक, सम्पदा अधिकारी एवं विश्वविद्यालय की सभी इकाइयों के अधिकारी व कर्मचारी व सेवानिवृत अधिकारी भी मौजूद रहे।

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