तालिबान को मध्य एशियाई देशों के सुरक्षा संगठन CSTO की चेतावनी: सरहदों पर हालात बिगड़े तो देंगे सैन्य जवाब
1 min readएनसीआई@सेन्ट्रल डेस्क
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी निज़ाम के आने से दक्षिण और मध्य एशिया के कई समीकरण बदल गए हैं। इन बदले हुए समीकरणों के बीच ही अफगानिस्तान के पड़ोसियों का बड़ा जमावड़ा ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में हो रहा है। शंघाई सहयोग संगठन के प्रमुखों की 17 सितम्बर को हो रही बैठक में अफ़ग़ानिस्तान के मौजूदा हालात और सुरक्षा चिंताएं एक अहम मुद्दा होगा।
शंघाई सहयोग संगठन की इस बैठक में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वर्चुअल तरीके से शरीक होंगे। पीएम मोदी बैठक के 17 सितम्बर को होने वाले सत्र में शरीक होंगे, हालांकि भारतीय विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर उनके प्रतिनिधि के तौर पर दुशांबे में मौजूद रहेंगे। एससीओ शिखर बैठक से अलग भारतीय विदेश मंत्री ईरान सहित कई देशों के नेताओं से मुलाकात करेंगे जो भारत की ही तरह मौजूदा हालात को लेकर चिंताएं रखते हैं। इन वार्ताओं के लिए जयशंकर आज 16 सितम्बर की सुबह दुशांबे रवाना हो गए।
बैठक में यूं तो पाकिस्तान और चीन के प्रतिनिधि भी मौजूद होंगे, लेकिन अभी तक भारतीय विदेश मंत्रालय मानता है कि उनसे मुलाकात का कोई कार्यक्रम नहीं है। इस बैठक के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी पूरे लाव-लश्कर के साथ ताजीकिस्तान पहुंच रहे हैं। इतना ही नहीं बैठक के बाद इमरान राजकीय दौरे के लिए भी ताजीकिस्तान रुकेंगे।
पलायन का दबाव
दरअसल, इमरान खान खान की कोशिश होगी अफ़ग़ानिस्तान में आए तालिबानी निज़ाम का लिए आयवृद्धि का इंतज़ाम करने की। तालिबान राज को लेकर सबसे ज़्यादा चिंतित ताजिकिस्तान ही है, क्योंकि अफगानिस्तान में ताजिक मूल के लोगों की बहुत बड़ी आबादी है। अफगानिस्तान की सत्ता में हिस्सेदारी न मिलने और तालिबानी ज़्यादतियों से इस आबादी के परेशान होने पर पलायन का दबाव भी ताजीकिस्तान पर ही ज़्यादा होगा। वहीं ताजीकिस्तान पंजशीर के इलाके में ताजिक मूल का लड़ाकों वाले एनआरएफ़ को समर्थन जताता है तो इससे तालिबान की चुनौतियां और बढ़ेंगी ही।
इतना ही नहीं तालिबान को लेकर रूस के रुख में भी बदलाव हुआ है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सुरक्षा खतरों के मद्देनज़र ही रूस व अन्य मध्य एशियाई देशों के सुरक्षा गठबंधन CSTO की अहम बैठक एससीओ शिखर सम्मेलन से पहले दुशांबे में 16 सितम्बर को बुलाई। सीएसटीओ विदेश मंत्रियों की 15 सितम्बर को हुई बैठक में कहा गया कि अफ़ग़ानिस्तान के हालात के कारण अगर ताजीकिस्तान की दक्षिणी सीमा पर अगर स्थितियां बिगड़ती हैं तो लभी देश सैन्य मदद के लिए एक साथ आगे आएंगे। साथ ही अफ़ग़ानिस्तान के सभी हथियारबंद समूहों से आपसी संघर्ष रोकने को कहा गया है, ताकि इसका असर पड़ोसी मुल्कों पर न पड़े।
हालात बिगड़ने की फिक्र
गौरतलब है कि तालिबान के मौजूदा तेवरों को देखते हुए ईरान, ताजीकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान समेत अफ़ग़ानिस्तान के कई पड़ोसी देशों को अपनी सीमाओं पर हालात बिगड़ने की फिक्र सता रही है। यही वजह है कि तालिबान को लेकर बीते दो हफ्तों में रूस के भी सुर बदले हैं। मास्को में तालिबान के साथ अफगान शांति वार्ताओं की मेजबानी करने वाले रूस ने खुलकर अपनी चिंताओं का इज़हार किया है। बीते दोनों ब्रिक्स की शिखर बैठक में जहां रूसी राष्ट्रपति की चिंताएं सामने आईं, वहीं रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार निकोलाई पत्रुशेव ने दिल्ली दौरे में भारत के साथ साझा भी कीं।
दुशांबे में हो रही शंघाई सहयोग संगठन की बैठक तालिबानी निज़ाम के लिए अंतरराष्ट्रीय मान्यता की पहली परीक्षा थी, जिसमें में फिलहाल नाकाम नज़र आया। एससीओ में अफगानिस्तान की पर्यवेक्षक देश के तौर पर मान्यता के बावजूद उसके प्रतिनिधि इस बात बैठक में नज़र नहीं आएंगे। तालिबान सरकार के ऐलान को एक हफ्ता बीत जाने के बावजूद अभी तक किसी देश ने आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है। साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ में भी उसके निज़ाम को अफ़ग़ानिस्तान की सीट नहीं मिल पाई है।
ऐसे में नज़रें होंगी कि भारत, रूस, ताजीकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, किर्गीज़स्तान, चीन और पाकिस्तान की सदस्यता वाला शंघाई सहयोग संगठन अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान को क्या संदेश देता है। इस बैठके में ईरान को भी एससीओ सदस्य देश के तौर पर शामिल करने को लेकर फैसले की उम्मीद है। ईरान के नए राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी इस बैठक के लिए दुशांबे पहुंच रहे हैं।
शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में रूस के राष्ट्रपति पुतिन का दौरा ऐन वक्त पर कोरोना संबंधी एहतियात के चलते टल गया, हालाँकि पुतिन ऑनलाइन इस बैठक में शरीक होंगे। वहीं, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी ऑनलाइन ही एससीओ शिखर बैठक में शरीक होंगे।