राजस्थान फोन टेप कांड पर फिर बवाल, सबकी निगाह सचिन पायलट की ओर
1 min read
एनसीआई@जयपुर
बहुचर्चित फोन टेपिंग कांड पर राजस्थान कांग्रेस में एक बार फिर भारी घमासान शुरू हो गया है। इसके चलते सचिन पायलट के खेमे ने फिर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को हटाने की मांग तेज कर दी है। इस बार पायलट खेमा, राजीव गांधी का उदाहरण दे रहा है। हालांकि, सीएम गहलोत ने कहा था कि अगर फोन टेपिंग के आरोप सही साबित होते हैं तो वे इस्तीफा दे देंगे और राजनीति छोड़ देंगे।
इतिहास के झरोखे से
अगस्त 1988 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने कर्नाटक जनता दल के मुख्यमंत्री राम कृष्ण हेगड़े से इस्तीफे की मांग की थी। हेगड़े पर आरोप था कि उन्होंने 50 राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के फोन टेप कराए। इस मसले पर तत्कालीन केन्द्रीय संचार मंत्री वीर बहादुर सिंह ने कहा था, ‘जनता सरकार लोकतांत्रिक मानदंडों की बात करती है, लेकिन अपनी शक्तियों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग कर रही है। हेगड़े ने अपने पार्टीजनों और मंत्रियों को भी असामाजिक तत्व माना था, क्योंकि कानून केवल ऐसे तत्वों के ही फोन टेप करने का प्रावधान करता है।’
जुलाई 2011 में कांग्रेस ने लोकायुक्त एन संतोष हेगड़े के कथित टेलीफोन टेपिंग के मामले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा से इस्तीफा मांगा था। इन सबको आधार बनाते हुए सचिन पायलट के समर्थक कहते हैं कि वे राजीव गांधी की पत्नी सोनिया और बेटे राहुल गांधी से अपेक्षा करते हैं कि वे उनके द्वारा निर्धारित सिद्धांतों का पालन करें।
हालांकि, अशोक गहलोत ने राजस्थान सरकार द्वारा जुलाई 2020 में कांग्रेस नेताओं और अन्य लोगों के फोन टेप कराने की रिपोर्ट को खारिज कर दिया था, जब पायलट ने अपने समर्थक विधायकों के साथ नई दिल्ली में डेरा डाल दिया था। गहलोत के करीबी एक सूत्र ने जोर देकर कहा कि टेलीफोन टेपिंग में किसी नेता या विधायक या मंत्री का नाम नहीं है।
यह है मामला
भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री कालीचरण सराफ के एक पुराने प्रश्न के उत्तर में कल सोमवार को गहलोत सरकार ने कहा था, ‘सार्वजनिक सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के हित में या किसी अपराध को प्रोत्साहित करने से रोकने के लिए, जो सुरक्षा या सार्वजनिक जोखिम पैदा करता है, उसे रोकने के लिए एक सक्षम अधिकारी द्वारा भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम 1885 की धारा 5 (2) और भारतीय टेलीग्राफ (संशोधन) नियम 2007 की धारा 419 (ए) के प्रावधानों और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 के सेक्शन 69 के तहत फोन इंटरसेप्ट किया जाता है।’ जवाब में आगे कहा गया, ‘उपरोक्त प्रावधान के तहत राजस्थान पुलिस द्वारा टेलीफोन टेप किया गया है और केवल सक्षम अधिकारी से अनुमति प्राप्त करने के बाद।’
यहां बड़ी बात यह है कि मुख्यमंत्री गहलोत, राजस्थान विधानसभा के भीतर और बाहर दोनों जगह फोन टेपिंग से इनकार करते रहे हैं। राजनीतिक संकट के दौरान गहलोत, जो राज्य के गृह मंत्री भी हैं, ने एसओजी को खरीद-फरोख्त कर रहे विधायकों पर राजद्रोह का केस दर्ज करने की मंजूरी दी थी। यह अलग बात है कि कुछ बागी विधायकों के खिलाफ राजद्रोह के आरोप बाद में हटा दिए गए थे।
इसके बाद, गहलोत ने एक न्यूज चैनल से कहा, ‘देखिए हमारे यहां कायदा नहीं होता है कि किसी विधायक या मंत्री का फोन टेप करें।’ फोन टेपिंग का मामला सामने आने के बाद कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अहमद पटेल, अजय माकन और केसी वेणुगोपाल की कमेटी बनाई थी। अहमद पटेल के निधन से पहले कमेटी की कुछ बैठकें हुई थीं। इसके बाद से अजय माकन ने कई बार अशोक गहलोत और सचिन पायलट के रिश्तों में जमीं बर्फ को पिघलाने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली।
सचिन और उनका गुट दरकिनार
राजस्थान में 11 मंत्री पद खाली पड़े हैं, लेकिन पायलट समर्थकों को शामिल नहीं किया गया है। सम्भावना जताई जा रही थी कि कांग्रेस मुख्यालय में सचिन पायलट को मीडिया विभाग का प्रमुख बनाया जा सकता है, लेकिन वह भी नहीं हुआ। इसके बजाय, सोनिया ने बंगाल और असम चुनावों के लिए पायलट को एक ‘स्टार प्रचारक’ बनाया।
कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि यह सम्भावना नहीं है कि सोनिया, राहुल या प्रियंका अभी असम, बंगाल, केरल, पुडुचेरी और तमिलनाडु चुनाव के दौरान कोई फैसला करेंगें। सभी की निगाहें अब सचिन पायलट पर हैं कि वह गहलोत के इस्तीफे की मांग करेंगे या नहीं, हालांकि, पायलट अभी कुछ बोल नहीं रहे हैं।
उनके कुछ समर्थक यह अनुमान लगा रहे हैं कि सचिन पायलट पहले हाईकमान की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि, यह सम्भावना नहीं है कि पायलट खेमा 2 मई, 2021 तक धैर्य बनाए रखेगा, जब पांचों राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम घोषित होने हैं।